बुद्धि मुझे दो शारदा
बुद्धि मुझे दो शारदा, सदन शीघ्र बन जाय ।
कर पूरण स्वर-साधना, देऊ तुझे बिठाय ।।
देऊ तुझे बिठाय, विराजो मेरे घर में ।
देओं गीत लिखाय, प्रकाश जगे अंतर में।।
कह ‘वाणी’ कविराज, चित्त में शु़द्धि मुझे दो ।
रचूं कुंडली शतक, मात् सदबुद्धि मुझे दो ।।
शब्दार्थ: सद्बुद्धि = श्रेष्ठ बुद्धि, सदन = भवन, अंतस में प्रकाश = आत्मज्ञान
भावार्थ:
हे वीणा वादिनी मां शारदा ! ऐसी सद्बुद्धि प्रदान करो कि अपेक्षित आवासीय भवन शीघ्र बन जावे । मैं वहीं पर स्वर-साधना पूर्ण कर तुम्हें भी ईशान कोण में छोटा-सा मंदिर बना प्र्रतिष्ठित करूँ । मेरे घर में निवास कर ऐसे अमर गीतों की रचना करवाओ, जिससे जन-जन का अन्तर्मन आलोकित हो जाए ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि हे मां मेरे चित्त को शुद्ध व पवित्र करो। मैं शिल्प कला पर सौ कुण्डलियों की रचना कर सकू, ऐसी सद्बुद्धि मुझे प्रदान करो।
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