Vastu Shashtra : Vidhya Dhan - Wealth of Knowledge (SK-10)



विद्या-धन श्वेत-वर्ण है ब्राह्मणी, क्षत्राणी है लाल। पीली धरा महाजनी, काली समझो काल।। काली समझो काल, दे मदिरा जैसी गंध। इसका कड़वा स्वाद, करे ना कोई पसंद।। कह ‘वाणी’ कविराज, विद्या-धन फूले- फले। बने कहीं कालेज, श्रेष्ठ भू श्वेत-वर्ण है।।
शब्दार्थ: काल = मृत्यु, काली = काले रंग की मिट्टी, फूले-फले = सुखद फल प्राप्त होए

भावार्थ:

रंग की दृष्टि से भूमि चार प्रकार की होत है। श्वेत-वर्णब्राह्मणी, रक्त-वर्णक्षत्राणी,पीत-वर्ण महाजनी और श्याम-वर्णी भूमि शूद्रा कहलाती है। शूद्रा भूमि की मदिरा जैसी गंधव कड़वा स्वाद होने से इसे कोई भी पसंद नहीं करता। निर्माण कार्य हेतु अनुपयोगी यह श्यामा भूमि कृषि-कार्य हेतु श्रेष्ठ होती है।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि धर्म, विद्या व कला के अधिकतम् प्रचार-प्रसार हेतु, अर्थात् मंदिर, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, अनुसंधान-भवन, विज्ञान-भवन आदि के सफलतम् स्वरूप हेतुश्वेतवर्णी ब्राह्मणी भूमिही सर्वश्रेष्ठ होती है।
वास्तु शास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर पोस्ट।धन्यवाद।

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छी जानकारी!

कॉपीराइट

इस ब्लाग में प्रकाशित मैटर पर लेखक का सर्वाधिकार सुऱक्षित है. इसके किसी भी तथ्य या मैटर को मूलतः या तोड़- मरोड़ कर प्रकाशित न करें. साथ ही इसके लेखों का किसी पुस्तक रूप में प्रकाशन भी मना है. इस मैटर का कहीं उल्लेख करना हो तो पहले लेखक से संपर्क करके अनुमति प्राप्त कर लें |
© Chetan Prakashan