श्रीगणेश
श्री गणेश निर्माण का, अच्छा मुहरत देख ।
धन मांगे पण्डित सभी, देखे मूषक रेख ।।
देखे मूषक रेख, न मांगे एकहूं पैसा ।
बैंच रेख तत्काल, भवन हो महलों जैसा ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, होय नहीं बाँका केश ।
जो जग बाँका होय, निपटे प्रभू श्रीगणेश ।।
शब्दार्थ: श्रीगणेश = कार्य का शुभारम्भ, मूषक = गणपति का वाहन (चूहा),जग बाँका होय = सब ओर शत्रु होना
भावार्थ:
निर्माण-कार्य के शुभारंभ हेतु श्रेष्ठतम् मुहूर्त निकलवाना चाहिए। कभी-कभी पंडित मुंह देखकर मुंह मांगा पैसा लेकर भी ऐसा नींव का मुहूर्त निकाल देते हैं कि नींव खुद ही नहीं पाती। हे श्रद्धालुओं! तुम तो गणेशजी के वाहन मूषक-राज को ही अपना हाथ दिखादो। वह एक पैसा भी नहीं मांगता है। यदि हाथ में भवन-रेखा ही नहीं होगी तो वह तत्काल प्रभाव से भवन-रेखा खींच भी देगा। फीस के नाम पर कुछ लड्डु थाली में सजा कर ले जाओ। लड्डु भी वह अपने स्वामी लम्बोदर महाराज के लिये ही मंगवाता है, स्वयं तो उनकी झूठन से ही संतुष्ट हो जाताहै ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि फिर निर्माण-कार्य में कोई बाधा नहीं आएगी। यदि पूरा संसार भी विरोध करेगा तो भी आपका बाल बाँका नहीं हो सकेगा। विघ्न विनाशक प्रभु श्रीगणेश एक-एक से निपटते रहेंगे। वे तो ऐसे ही कार्यों में सिद्धहस्त हैं।
वास्तु शास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
3 टिप्पणियां:
आभार आपका.
बढिया लगा पढकर ।
bahut khusi hui ki aap ko hamara ye blog acha laga
asha he next time bhi aap ko aca lagega
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