लाल भूमि
लाल भूमि यह रावरी, राजा देय बनाय।
स्वाद कषैला सा लगे, गंध रक्त की आय ।।
गंध रक्त की आय, लगे स्पर्श से यह ठोस ।
बनादो राज-भवन, राज बढ़े सौ-सौ कोस ।
कह ‘वाणी’ कविराज,शस्त्र, भण्डार,छावनी।
कारखाना लगाय, ऐसी भू यह रावरी।।
शब्दार्थ: कषैला = आंवला या हरड़ जैसा स्वाद, रावरी = आपकी, छावनी = सैनिकों का पड़ाव
भावार्थ:
रक्तवर्णी भूमि आवासियों के राजसी ठाठ बाट कर देती है। यह रक्त जैसी गंध कषैला स्वाद और स्पर्श से ठोस प्रतीत होती है। ऐसी भूमि पर राज-भवन बनाने से उस राजा का राज सौ-सौ कोसों तक बढ़ जाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि लाल भूमि पर राजभवन, विधानसभा, लोकसभा, प्रशासनिक भवन, शस्त्र भंडार, छावनी बनाए या युद्ध सामग्री का कारखाना लगाएं। रक्तवर्णी भूमि का इस प्रकार सर्वश्रेष्ठ उपयोग करते हुए हे राज पुरुष! तुम खूब उन्नति करो।
वास्तु शास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
4 टिप्पणियां:
JI JARUR AAP KO AANE WALE TIME ME HAM ALAG ALAG PRKAR4 KI JANKARI DENGE JISME MITI OR PLATS TE PRKAR HONGE
SHEKHAR KUMAWAT
जी ! जरुर आने वाले समय में आप को अलग अलग प्रकार की भूमि एवंम अलग अलग प्रकार के प्लाट के बारे में रोचक जानकारी दी जाएगी |
अमृत 'वाणी'
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