पूरब राखे रोड़
पूरब राखे रोड़ जो, रोड़ा मेटे रोड़।
निरोग राखे आपको, धन देवेगा जोड़ ।।
धन देवेगा जोड़, रख बिजली का सामान।
सोना-पीतल बेच, लाल कलर के सामान।।
कह ‘वाणी’ कविराज, हमेशा खुश राखे रब।
निकले पूत सपूत, रोड़ तुम रखलो पूरब ।
शब्दार्थ: राखे = रखना, रोड़ा = बाधाएँ, मेटे = मिटाते हैं, रख = ईश्वर
भावार्थ: पूरब दिशा का रोड उस भवन की कई सारी विपत्तियों को स्वतरू दूर करने वाला होता है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ धन-वृद्धि भी करता है। वहां बिजली के सामान, सोना-पीतल जैसी वस्तुएँ और लाल, गुलाबी, आरेन्ज कलर की वस्तुओं का व्यापार बहुत अच्छा चलता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वहाँ ईश्वर सदैव प्रसन्न रहते हैं, संस्कारवान अच्छे प्रारब्ध लिए हुए कई सुपुत्रों का जन्म होता है, जिससे परिवार का गौरव बढ़ता है। पूर्व दिशा का रोड़ इस प्रकार से लाभदायक सिद्ध होता है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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satya vachan
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