शूद्रा भूमि उसे कहें , काला होवे रंग |
कड़वा-कड़वा स्वाद दे , देवे मदिरा-गंध ।।
देवे मदिरा-गंध, ठीक-ठाक रहते योग |
लोन लेलो भैया, लगालो एक उद्योग ||
कह `वाणी´ कविराज , फिर भी बात नहीं जमी ।
बनाय वहाँ श्मशान, त्यागो तुम शूद्रा भूमि ||
शब्दार्थ : मदिरा गंध = मदिरा जैसी बदबू आना, त्यागो = छोड़ दो, लोन = उद्योग हेतु ऋण लेना
भावार्थ : श्याम वणीZ कृषि योग्य भूमि को शूद्रा भूमि कहते हैं। जिसका स्वाद कड़वा एवं गंध मदिरा जैसी होती है। आवास हेतु यह भूमि त्याज्य मानी गई है। यहाँ उन्नति के अतिसाधारण योग बनते हैं। यदि आपको फिर भी वहाँ रहना पड़ रहा हो तो थोड़ा-सा कर्जा लेकर छोटा-सा उद्योग लगा लेवें जिससे गुजर-बसर हो सके ।
3 टिप्पणियां:
रोचक जानकारी से भरी पोस्ट /
बहुत बढ़िया कुण्डलिया छन्द है!
bahut hi badhiya jankari di hai....aabhar.
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