त्रिभुज
त्रिभुज जहाँ, कहीं बने, समझ उसे त्रिशूल।
दिन-दिन भारी कष्ट दे, कभी न कर तू भूल ।।
कभी न कर तू भूल, होय मुकदमा बिन बात।
धन का होवे धूल, धूल उड़ेगी दिन-रात ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जेल जाय अग्रज-अनुज।
बिताय चैदह साल, त्याग दे ऐसा त्रिभुज ।।
शब्दार्थ: त्रिशूल = तीन प्रकार के कष्ट एकसाथ होना, अग्रज अनुज = बड़े व छोटे भाई बन्धु,चैदह साल = हत्या के अभियुक्त की सजा की अवधि
भावार्थ:
त्रिभुजाकार भूखण्ड को त्रिशूल समझ शीघ्रही त्याग देना चाहिए। उस भूमि पर निवास करने से प्रतिदिन कष्ट और बाधाएं बढ़ती जाती हैं, ऐसे प्लाट लेने की कभी भूल न करें। वहाँ छोटी-छोटी सी बात पर मुकदमें चलते हैं। धन की धूल हो जाती है। वही धूल दिन-रात उड़-उड़ कर नेत्रों व हृदय के प्रेम-पुष्पों पर जम जाती है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि व्यवहार में स्वतरू ऐसी कटुता आ जाती है कि परस्पर हत्याएं तक हो जाती हैं। कभी कभी छोटे-बड़ों को जेल में चैदह-चैदह साल तक बिताने पड़ सकते हैं, इसलिये त्रिभुजाकार जमीन को त्रिशूल समझ देखते ही त्याग दें, अथवा उसे पूर्ण वर्गाकार बनाकर ही निर्माण कार्य कराएं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
1 टिप्पणी:
चलिए कुछ नयी जानकारी मिली आपके ब्लॉग पे .......!!
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