पीली-हरी जमीं
पीली हरी जमीं जहां, जम-जम बरसे नोट ।
खट्टा इसका स्वाद है, करो सेठजी नोट ।।
करो सेठजी नोट, देय यह शहद सी गंध ।
भू महाजनी होय, चलाय धन्धे जो बंद ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, धरा धन देवे पीली ।
स्वर्णाभूषण पहन, पत्नियाँ पीली-पीली ।।
शब्दार्थ: जम-जम बरसे = लम्बी अवधि तक बरसना, स्वर्णाभूषण = सोने के गहने
भावार्थ:
पीली और हरे रंग की भूमि पर जम-जम कर नोटों की बरसातें होती है। शहदजैसी गंध वाली इस भूमि का स्वाद खट्टा होता है। हे सेठजी! ऐसी प्रमुख बातें आप नोट कर लेवें। इसे महाजनी और वैश्या भूमि भी कहते हैं। यह वर्षों से बन्द धन्धे शीघ्र चला कर स्वामी को धनवान बना देती है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि पीत वर्णी भूखण्ड इतना धन दायक होता है कि उस भवन की बेटियां व कुल-वधुएं स्वर्णाभूषण पहन-पहन कर ऐसी पीली-पीली दिखती हैं कि उन्हें पहचानने में ही परेशानी आ जाती है। उन्हें देख, पता ही नहीं चल पाता कि ये हमारे परिवार की बहू-बेटियां हैं या हेम कन्याएं हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
2 टिप्पणियां:
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