Vastu Shashtra : Chakrakar Plat / Crecoid (Round) Shaped Plot (SK-16)


चक्राकार प्लाट चक्कर में चक्कर चले, चलता चक्कर खाय । चक्कर चाले प्लाट का, सारा ही धन जाय |। सारा ही धन जाय, तब खाय दिमाग चक्कर । संभल-संभल कर चले, तो लगे प्यारे टक्कर ।। कह ‘वाणी’ कविराज, काट डाक्टर के चक्कर। मिटा सारे चक्कर, छोड़ो प्लाट का चक्कर ।
शब्दार्थ: चक्कर = चक्राकार/परेशानी, चाले = चलना
भावार्थ:
चक्राकार भूखण्ड में बड़े-बड़े चक्कर पड़ते रहते हैं। भूमि-विवादों में धन का अपव्यय होता रहता है। धन हीन होते ही दिमाग चक्कर खाने लगता है। दुर्भाग्य के कई चक्कर एक साथ चालू होते हैं, यथा संभल-संभल कर चलने पर भी वाहन दुर्घटना हो जाना।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि दुर्घटना होने के बाद डाक्टरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इन सभी चक्करों से मुक्ति पाने के लिए एक ही उपाय यह है कि तुम ऐसे चक्राकार प्लाट खरीदने का चक्कर ही छोड़दो। यदि पहले से ही चक्राकार है तो उसे वर्गाकार बनाकर आप सदैव प्रसन्न रहें।

वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shashtra : Sarvashreshth plat / The Best Plot (SK-15)



सर्वश्रेष्ठ प्लाट भर्जा जेब जनाब की, कर प्लाट का विचार। सर्वश्रेष्ठ वह प्लाट है, जो हो वर्गाकार ।। जो हो वर्गाकार, नब्बे - नब्बे के कोण । विकर्ण रहे समान, ढाल हो ईशान कोण ।। कह ‘वाणी’ कविराज, चार-पथ भागे कर्जा । नौ पीढ़ी आराम, स्वतरू सब खुशियां भर्जा । शब्दार्थ: विकर्ण = चतुर्भुज में समकोण के सामने की भुजा, पथ = रास्ता, भा जेब-सुदृढ़ आर्थिक स्थिति
भावार्थ:

जब आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाए कि ठसा-ठस भरी हुई जेबों में से यदा-कदा कागज के कुछ विशेष रंगीन टुकड़े स्वतरू हवा में उड़ने लगें, तब तुम्हें सर्वश्रेष्ठ वर्गाकार प्लाट खरीदने का सुविचार करना चाहिए। यदिप्लाट के चारों कोण समकोण, दोनों विकर्ण समान और भूमि का ढलान ईशान कोण की ओर हो तो सोने में सुहागा है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि चारों तरफ रोड़ होने से खाली खजाना शीघ्र भर जाता है और वहां कई पीढ़ियां बड़े आनन्द से रहती हई विभिन्न प्रकार की खुशियां प्राप्त करती हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shashtra : Methi Methi Bhu Jahan - Swet Soil / Land (SK-14)


मीठी-मीठी भू मीठी-मीठी भू जहां, गंध सुहानी देय। सब सुख सुलभ होय वहाँ, कृपा-सिंधु सब देय।। कृपा-सिंधु सब देय, बढ़े वंश में धन-धान। सभी सम्मान देय कोर्ट-कचहरी में मान।। कह ‘वाणी’ कविराज, दुरूख सब ही के भागे । जाय खरीदो प्लाट, जहां भू मीठी लागे।
शब्दार्थ: मीठी लागे = मिट्टी का स्वाद मीठा लगना, भू = भूमि
भावार्थ:

विद्वान-पंडितों के लिए वही आवासीय भूखण्ड सर्वश्रेष्ठ होता है, जिस मिट्टी का स्वाद मीठा एवं गंध सुहानी हो। वहां कृपा-सिन्धु के सदैव प्रसन्न रहने से वंश,धन धान्य और सभी प्रकार के सुख स्वतरू बढ़ते हैं। कोर्ट-कचहरी के विवाद आपके पक्ष में निकलने से सम्मान-वृद्धि होती है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि परिवार के किसी सदस्य के यदि कोई पुराना दुरूख-दर्द है तो वह भी शीघ्र ही दूर हो जावेगा, आप तो बस मीठी लगने वाली श्वेत-वर्णी ब्राह्मणी भूमि की कॉलोनी में एक आवासीय प्लाट खरीद लो।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shashtra : Shudra Bhumi - Shudra Land (SK-13)



शूद्रा भूमि शूद्रा भूमि उसे कहें, काला होवे रंग । कड़वा-कड़वा स्वाद दे, देवे मदिरा-गंध ।। देवे मदिरा-गंध, ठीक-ठाक रहते योग। लेलो भैया लोन, लगालो एक उद्योग । कह ‘वाणी’ कविराज, बात फिर भी नहीं जमी। बनाय वहाँ श्मशान, त्यागो तुम शूद्रा भूमि ।।
शब्दार्थ: मदिरा गंध = मदिरा जैसी बदबू आना, त्यागो = छोड़ दो, लोन = उद्योग हेतु ऋण लेना
भावार्थ:

श्याम वर्णी कृषि-योग्य भूमि को शूद्रा भूमि कहते हैं, जिसका स्वाद कड़वाएवं गंध मदिरा जैसी होती है। आवास हेतु यह भूमि त्याज्य मानी गई है। यहां उन्नति के अति साधारणयोग बनते हैं। यदि आपको फिर भी वहां रहना पड़ रहा हो तो थोड़ा-सा कर्ज लेकर छोटा-सा उद्योग लगा लें, जिससे गुजर-बसर हो सके।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि उद्योग नहीं चले तो उस भमि को कषि-कार्य हेत प्रयोग में लेवें। कषि में भी आपसे पसीना नहीं बहाया जा सके तो फिर अंत में उसे श्मशान के लिए त्याग दें। यदि परिस्थितिवश नहीं त्याग सकते हों, तो वहां चारो ओर पीली-मिट्टी अवश्य डलवा दें, जिससे आर्थिक सम्पन्नता बढ़ेगी।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया






Vastu Shashtra : Pili Hari Bhumi - Yellow Green Land (SK-12)


पीली-हरी जमीं पीली हरी जमीं जहां, जम-जम बरसे नोट । खट्टा इसका स्वाद है, करो सेठजी नोट ।। करो सेठजी नोट, देय यह शहद सी गंध । भू महाजनी होय, चलाय धन्धे जो बंद ।। कह ‘वाणी’ कविराज, धरा धन देवे पीली । स्वर्णाभूषण पहन, पत्नियाँ पीली-पीली ।।
शब्दार्थ: जम-जम बरसे = लम्बी अवधि तक बरसना, स्वर्णाभूषण = सोने के गहने

भावार्थ:

पीली और हरे रंग की भूमि पर जम-जम कर नोटों की बरसातें होती है। शहदजैसी गंध वाली इस भूमि का स्वाद खट्टा होता है। हे सेठजी! ऐसी प्रमुख बातें आप नोट कर लेवें। इसे महाजनी और वैश्या भूमि भी कहते हैं। यह वर्षों से बन्द धन्धे शीघ्र चला कर स्वामी को धनवान बना देती है।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि पीत वर्णी भूखण्ड इतना धन दायक होता है कि उस भवन की बेटियां व कुल-वधुएं स्वर्णाभूषण पहन-पहन कर ऐसी पीली-पीली दिखती हैं कि उन्हें पहचानने में ही परेशानी आ जाती है। उन्हें देख, पता ही नहीं चल पाता कि ये हमारे परिवार की बहू-बेटियां हैं या हेम कन्याएं हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया






Vastu Shashtra : Lal Bhumi - Red Land (SK-11)


लाल भूमि लाल भूमि यह रावरी, राजा देय बनाय। स्वाद कषैला सा लगे, गंध रक्त की आय ।। गंध रक्त की आय, लगे स्पर्श से यह ठोस । बनादो राज-भवन, राज बढ़े सौ-सौ कोस । कह ‘वाणी’ कविराज,शस्त्र, भण्डार,छावनी। कारखाना लगाय, ऐसी भू यह रावरी।।
शब्दार्थ: कषैला = आंवला या हरड़ जैसा स्वाद, रावरी = आपकी, छावनी = सैनिकों का पड़ाव
भावार्थ: रक्तवर्णी भूमि आवासियों के राजसी ठाठ बाट कर देती है। यह रक्त जैसी गंध कषैला स्वाद और स्पर्श से ठोस प्रतीत होती है। ऐसी भूमि पर राज-भवन बनाने से उस राजा का राज सौ-सौ कोसों तक बढ़ जाता है। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि लाल भूमि पर राजभवन, विधानसभा, लोकसभा, प्रशासनिक भवन, शस्त्र भंडार, छावनी बनाए या युद्ध सामग्री का कारखाना लगाएं। रक्तवर्णी भूमि का इस प्रकार सर्वश्रेष्ठ उपयोग करते हुए हे राज पुरुष! तुम खूब उन्नति करो। वास्तु शास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shashtra : Vidhya Dhan - Wealth of Knowledge (SK-10)



विद्या-धन श्वेत-वर्ण है ब्राह्मणी, क्षत्राणी है लाल। पीली धरा महाजनी, काली समझो काल।। काली समझो काल, दे मदिरा जैसी गंध। इसका कड़वा स्वाद, करे ना कोई पसंद।। कह ‘वाणी’ कविराज, विद्या-धन फूले- फले। बने कहीं कालेज, श्रेष्ठ भू श्वेत-वर्ण है।।
शब्दार्थ: काल = मृत्यु, काली = काले रंग की मिट्टी, फूले-फले = सुखद फल प्राप्त होए

भावार्थ:

रंग की दृष्टि से भूमि चार प्रकार की होत है। श्वेत-वर्णब्राह्मणी, रक्त-वर्णक्षत्राणी,पीत-वर्ण महाजनी और श्याम-वर्णी भूमि शूद्रा कहलाती है। शूद्रा भूमि की मदिरा जैसी गंधव कड़वा स्वाद होने से इसे कोई भी पसंद नहीं करता। निर्माण कार्य हेतु अनुपयोगी यह श्यामा भूमि कृषि-कार्य हेतु श्रेष्ठ होती है।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि धर्म, विद्या व कला के अधिकतम् प्रचार-प्रसार हेतु, अर्थात् मंदिर, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, अनुसंधान-भवन, विज्ञान-भवन आदि के सफलतम् स्वरूप हेतुश्वेतवर्णी ब्राह्मणी भूमिही सर्वश्रेष्ठ होती है।
वास्तु शास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



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