मीठी-मीठी भू
मीठी-मीठी भू जहां, गंध सुहानी देय।
सब सुख सुलभ होय वहाँ, कृपा-सिंधु सब देय।।
कृपा-सिंधु सब देय, बढ़े वंश में धन-धान।
सभी सम्मान देय कोर्ट-कचहरी में मान।।
कह ‘वाणी’ कविराज, दुरूख सब ही के भागे ।
जाय खरीदो प्लाट, जहां भू मीठी लागे।
शब्दार्थ: मीठी लागे = मिट्टी का स्वाद मीठा लगना, भू = भूमि
भावार्थ:
विद्वान-पंडितों के लिए वही आवासीय भूखण्ड सर्वश्रेष्ठ होता है, जिस मिट्टी का स्वाद मीठा एवं गंध सुहानी हो। वहां कृपा-सिन्धु के सदैव प्रसन्न रहने से वंश,धन धान्य और सभी प्रकार के सुख स्वतरू बढ़ते हैं। कोर्ट-कचहरी के विवाद आपके पक्ष में निकलने से सम्मान-वृद्धि होती है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि परिवार के किसी सदस्य के यदि कोई पुराना दुरूख-दर्द है तो वह भी शीघ्र ही दूर हो जावेगा, आप तो बस मीठी लगने वाली श्वेत-वर्णी ब्राह्मणी भूमि की कॉलोनी में एक आवासीय प्लाट खरीद लो।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
1 टिप्पणी:
अची भूमि के और क्या प्रकार हे और किस तरह की भूमि हमें लेना चाहिए
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