धनुष सरीखा प्लाट
धनुष सरीखे प्लाट में, चले हृदय पर तीर।
सब बांधव बैरी बने, आँसू बहाय वीर।।
आँसू बहाय वीर, कोई ना पूछे हाल।
होय जिगर का खून, रहे रोज आँखें लाल।।
कह ‘वाणी’ कविराज, बनो तुम उसी सरीखे।
या झट बेचो आप , प्लाट जो धनुष सरीखे।।
शब्दार्थ: हृदय पर तीर = हार्दिक पीड़ा, बांधव = मित्र, बैरीशत्रु, उस सरीखे = उसके जैसे निर्लज्ज होना , दो = त्याग दे
भावार्थ: धनुष जैसी आकृति का भूखण्ड ले लेने पर आए दिन पंगा लेना पड़ता है। मित्रगण शत्रुवत् व्यवहार करते हुए दूर चले जातंे, धैर्य शाली व्यक्ति भी वहाँ अविरल अश्रु बहाते हुए मिलते हंै। कोई उनके कुशल क्षेम पूछने तक नहीं आता। जिगर का खून रिसते रहने से प्रतिदिन आँखें लाल रहती हंै। कई बार तो क्रोध अन्दर का अन्दर घुट-घुट कर रह जाता है।
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