Vastu Shastra : Anda Jaisa Plat / Oval Or Egg Shaped Plot. (SK-25)


अण्डा जैसा प्लाट अण्डा जैसा प्लाट जो, ले लेवे श्रीमान । सभी तरफ दुश्मन बढ़े, रक्षा कर भगवान ।। रक्षा कर भगवान, त्यागने की दो सलाह । जीवन भर पुकारे, हे ईश्वर हे अल्लाह ।। कह ‘वाणी’ कविराज, अपराध बिन खाडण्डा। जीवन बिगड़ा जाय, खाय ब्राह्मण भी अण्डा।।
शब्दार्थ:: त्यागना = छोड़ना
भावार्थ: अण्डाकार प्लाट अगर कोई खरीद लेता है तो उसके चारों तरफ इतने शत्रु बढ़ जाते हैं कि केवल भगवान ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। आप जानते हैं भगवान तो आजकल ऐसे ओवर बिजी हैं कि उन्हें अपने ही कार्यों से फुरसत नहीं है। इसलिए बुद्धिमानों को चाहिए कि वे मिलते समय उन्हें वह अण्डाकार प्लाट त्यागने की सलाह अवश्य देवें। जब तक वह प्लाट नहीं त्यागेगा तब तक जीवन भर विभिन्न कष्टों से कराहता हुआ हे ईश्वर! हे अल्लाह ! करताही रहेगा।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस प्रकार की भूमि के कुप्रभाव से कभी-कभी बिना अपराध के भी डण्डे खाने पड़ सकते हैं,जीवन में ऐसा नैतिक पतन भी हो जाता है कि ब्राह्मण पुत्र भी खुलकर अण्डे खाने लग जाते हैं। अण्डाकार भूखण्ड को आयताकार रूप में बदलने पर वह शुभ भूखण्ड बन जावेगा।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shastra : Chamcha Jaisi Bhu / Spoon Like Plot (SK-24)


चमचा जैसी भू चमचा जैसी भू जहाँ, चमचा देय बनाय। पंखाकार जिसे कहें, पंखे से धन जाय ।। पंखे से धन जाय, जाय दूधिया जानवर । ना रहते पास पशु, कैसे पास रहते नर ।। कह ‘वाणी कविराज, गया सब, कुछ नहीं बचा। देख जाने वाले, थाली कटोरी चमचा ।। शब्दार्थ: चमचा = चम्मचा / चापलूस व्यक्ति
भावार्थ:

चमचे जैसी आकृति के भवन को चम्मच के भाव ही बेचते हुए उसे शीघ्रछोड़ देना चाहिए, वरना वह भवन आपको चमचा बना कर ही छोड़ेगा। इस आकृति का दूसरा नाम पंखाकार एवं व्यंजनाकार भी है । इसमें पंखे की तेज हवा से कागज के रंग-बिरंगे छोटे-छोटे टुकड़े उड़ जाते हैं। धन ही नहीं दूधिया जानवर भी एक-एक करके चले जाते हैं। जब जानवरही पास नहीं रहते हैं, तो भला मनुष्य बाल-बच्चे वहाँ कैसे रहेंगे।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि सुन गृहिणी बहुत कुछ चला गया कुछ नहीं बचा। देखती रहो अब शीघ्र ही तुम्हारे घर के थाली, कटोरी, चम्मच ये भी बिकने वाले हैं। इसलिये शीघ्र ही चमचाकार भवन को त्याग दो। यदि खाली भूखंड है

वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shashtra : Shaktakar Jamin Jhan / Pentagonal Plot (SK-23)


शकटाकार जमीं शकटाकार जमीं जहां, जान जंग-मैदान। बीमारी जाय न कभी, जाय धन और धान ।। जाय धन और धान, क्रोध करते अग्नि-देव। करेगा देव-देव, सुने न कभी महादेव ।। कह ‘वाणी’ कविराज,जीवन भर रह बीमार। छोडूं-छोडूं न कर, छोड़ जमीं शकटाकार।
शब्दार्थ: शकटाकार = बैलगाड़ी जैसी भूमि, जंग = लड़ाई-झगड़ा
भावार्थ:
शकटाकार प्लाट को आप जंग का ओलंपिक मैदान समझ लो। कभी पड़ोसी वर्सेज पड़ोसी तो कभी लड़ाकू पत्नी वर्सेजसज्जन पति के बीच सेमी फाईनल मैच चलते ही रहते हैं। वहां से बीमारी तोजाती नहीं किंतु उसे भगाने के प्रयास में लक्ष्मी चली जाती है। अग्नि-भय सदैव बना रहता है एवं छोटे-मोटे देवी-देवता तो क्या महादेव भी मदद करने नहीं आते।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यह भूमि जीवन-भर बीमार रखने वाली, त्याज्य भूमि है। तुम इसके लिए छोडूं-छोडूं मत कहो। आज से ही इसे छोड़कर सदैव प्रसन्न रहो। यदि उसे नहीं छोड़ सकते हैं तो वह कोण त्यागकर भूखण्ड को आयताकार बना लेवें।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shashtra : Charbhuja Asman / Four Sides Un Equal (SK-22)


चारभुजा असमान चारभुजा असमान हो, शून्य होयगा मान । धन भी छोडे आपको, अंत होय अपमान ।। अंत होय अपमान, मान घट-घट माय घटे । जंगल-जंगल जाय, वह राम ही राम रटे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, ढूंढे सब अनुज-अनुजा । जोड़े लंबे हाथ, मदद कर हे ! चारभुजा ।। शब्दार्थ: चार भुजा = प्लाट की चारों भुजा, माय = अन्दर, चारभुजा = चतुर्भुज भगवान (विष्णु)
भावार्थ: जिस भूखण्ड की चारों भुजाएं असमान हों वहां मान-सम्मान का ग्राफ घटता हुआ शून्य से भी काफी नीचे चला आता है। धन जाता हुआ इतना अपमानित करा देता है कि जिससे भू-स्वामी सदा अशांत रहता हुआ मात्र मनोरोगी बन कर रह जाता है। वह भाग-भाग कर जंगलों के एकांत मेंजा जा कर बैठता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि देर रात तक भी गृहस्वामी घर नहीं पहुंचते,छोटेभाई-बहिन सब तरफ ढूंढ कर खाली हाथ घर लौट आते हैं। अंत में हाथ जोड़कर प्रभु से ही प्रार्थना करते हैं कि हे चारभुजा नाथ! अब आप ही मदद करो, जहां भी हो उन्हें ढूंढकर घर लाओ। ऐसे भूखण्डों को आयत या वर्ग में बदलने से वेशुभ फलदायी होजाते हैं। अलग पार्टीशन कर उस टुकड़े में गार्डन इत्यादि लगा सकते हैं। ईशान कोण में गार्डन अति शुभ होते हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



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