भू डमरू आकार
डम-डम-डम डमरू बजे, भू डमरू आकार।
जिसका प्यारा नाम है, करे न कोई प्यार ।।
करे न कोई प्यार, आँख में मोतियाबिन्द ।
नेत्र विकार ऐसा, बना न बेचारा बीन्द ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, रोज करता मरूँ-मरूँ।
नव जीवन तू पाय, बेच वह डम-डम डमरू ।।
शब्दार्थ: बीन्द = दूल्हा
भावार्थ: डमरू जैसे भवन के निवासियों में परस्पर मोहब्बत नहीं रहती।प्रेमी, सुन्दरी,प्रेमसुख, मोहब्बतसिंह, उल्फत आदि नाम होने पर भी कोई उनसे प्यार नहीं करता। भूमि के कुप्रभाव से ऐसा मोतियाबिन्द हो जाता है कि बेचारा, बीन्द (दूल्हा) तक नहीं बन पाता ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि तब जीवन से भयंकर निराश होकर हृदय एक दिन में कई बार, आज मरूँ, नहीं तो कल तो जरूर मरूँ, ऐसा कहने लग जाता है। अरे भाई! मरूँ-मरूँ मत कर, तुझे नया जीवन मिल जाएगा, तू तो यह डमरू आकार का प्लाट बेच दे या इसकी आकृति में थोड़ा-सा परिवर्तन करतेहए इसे शुभ आयताकार भूखण्ड बनाले।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
3 टिप्पणियां:
अच्छा हुआ आपने आखिरी दो पंक्तियों का अर्थ भी समझा दिया , अच्छा है
nice
That is really praiseworthy. Keep posting.
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