अग्नि कोण के रोड़
अग्नि कोण के रोड़ में, घटे बैंक बेलेन्स।
घट-घट प्राणेश्वर घटे, वाईफ नानसेन्स।।
वाईफ नानसेन्स, फाइनल डिसिजन देवे।
प्रजेण्ट हो पतिदेव, कन्सल्ट कभी न लेवे ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, रहे श्रीमानजी मौन।
लेय पत्नी क्रेडिट, रोड़ हो अग्नि कोण।।
शब्दार्थ: : नानसेन्स = बुद्धिहीन मूर्खा, प्रजेण्ट = उपस्थिति, फाइनल डिसिजन = अंतिम निर्णय, क्रेडिट = सम्मान ख्याति, कन्सल्टरू सलाह
भावार्थ:
जिस भवन के पूर्व और दक्षिण दिशाओं में रोड़ हो वहाँ धन-वृद्धि रुक जाती है, जलांजलि की भाँति बैंक बैलेन्स निरन्तर घटता रहता है । बुद्धिहीन पत्नी मिलने से प्राणेश्वर का मान-सम्मान भी घटने लग जाता है। इतना ही नहीं वही नानसेन्स पत्नी इम्पार्टेन्ट केसेज में फाइनल डिसीजन भी दे देती है। पति महोदय की प्रजेन्स में भी किसी भी बड़ी बात पर बेचारे से कभी कन्सल्ट नहीं लेती।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि ऐसे घरों में हर समझदार व विद्वान, पति परमेश्वर लौहे की अलमारी की भाँति मौन ही खड़े रहते हैं, कभी बोल पड़ते हैं, तो वह भी अलमारी की स्टाईल में ही किसी के कुछ समझ में नहीं आता । देखते-देखते हर कार्य की क्रेडिट वही नानसेन्स पत्नी ले जाती है। बेचारा पति हर बार जीती बाजी हार जाता है। ऐसे भूखण्ड स्वामी को पूर्व व उत्तर दिशा में अधिक जगह छोड़ते हुए ईशान कोण में गहरा टेंक व प्रवेश द्वार उचित स्ािान पर लगाकर सुख प्राप्त कर सकते हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
2 टिप्पणियां:
पत्नी से जीती बाजी हारने में ही पति की जीत है .... बहुत लाजवाब लिखते हैं आप ...
bhai aapro blog to jordar hai.badhai.tharo kalsiyo mhare blog mathe ni mandyo.kain rollo hai?
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