धनुष सरीखे प्लाट
धनुष सरीखे प्लाट में, चले हृदय पर तीर ।
सब बांधव बैरी बने, आँसू बहाय वीर।।
आँसू बहाय वीर, कोई ना पूछे हाल।
होय जिगर का खून, रहे रोज आँखे लाल ।
कह ‘वाणी’ कविराज, बनो तुम उसी सरीखे।
या झट बेचो आप, प्लाट जो धनुष सरीखे ।।
शब्दार्थ: हृदय पर तीर = हार्दिक पीडा, बांधव = मित्र, बैरी = शत्रु, उस सरीखे = उसके जैसे निर्लज्ज होना, दो = त्याग दे
भावार्थ: धनुष जैसी आकृति का भूखण्ड ले लेने पर आए दिन पंगा लेना पड़ता है। मित्रगण शत्रुवत् व्यवहार करते हुए दूर चले जाते हैं, धैर्यशाली व्यक्ति भी वहाँ अविरल अश्रु बहाते हुए मिलते हैं। कोई उनके कुशल-क्षेम पूछने तक नहीं आता। जिगर का खून रिसते रहने से प्रतिदिन आँखें लाल रहती हैं। कई बार तोक्रोध अन्दर का अन्दर घुट-घुट कर रह जाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि या तो तुम भी पड़ोसी के समान निम्न स्तर के होजाओ या फिर यह धनुष जैसी आकृति का प्लाट शीघ्र बेचकर चैन की नींद सोओ। कुछ भूमि छोड़ते हुए उसे आयताकार रूप देकर भी सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
4 टिप्पणियां:
रोचक और उपयोगी प्रस्तुती /
वास्तू के गूड़ रहस्य .. कविता द्वारा समझा रहे हैं आप .. शुक्रिया ...
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