Vastu Shastra : Dakshin Paschim Road (Neretya Road) / South - West Road (SK-33)


दक्षिण-पश्चिम रोड़ दक्षिण-पश्चिम रोड़ है, है मालिक श्रीराम । जीवन साधारण चले, सीधा-सादा काम ।। सीधा-सादा काम, मिले वहां दाल-रोटी। खीर-पूड़ी के ख्वाब, रहेगी सेहत मोटी।। कह ‘वाणी’ कविराज, आय ना संकट के क्षण। नहीं चढ़ाव-उतार, ठीक-ठाक रहे दक्षिण ।।
शब्दार्थ: ख्वाब = स्वप्न, सेहत = स्वास्थ्य
भावार्थ:
दक्षिण-पश्चिम वाले डबल रोड़ के भूखण्ड को अति साधारण माना गया है। श्रीराम की मदद से ही जीवन-गाड़ी पार लग सकती है। साधारण-सा जीवन और व्यवसाय चलता है। दाल-रोटी समय पर मिल जाती है परंतु खीर-पूड़ी के तो,ख्वाब पर ख्वाब आते रहते हैं। यहाँ रहने वाले ठीक-ठाक स्वास्थ्य वाले निवासियों के जीवन में अधिक उतार चढ़ाव नहीं आते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि नैऋत्य मुखी भूखण्ड इस प्रकार अति साधारण फलदायक होता है, किंतु वास्तु के अन्य सिद्धांतों का पालन करने से सम्पन्नता अवश्य बढ़ेगी।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shastra : Ishan Road (Utter Purv Road)/ Road on North East Side (SK-32)



ईशान रोड / उत्तर-पूर्व रोड ईशान कहे रोड़ हो, सब सुख राम कहाय । शांति आय यूँ दौड़ती, पी.टी. ऊषा आय ।। पी.टी. ऊषा आय, हृदय तब खिल-खिल जावे। पत्नी बाटी लाय, मन लडू समझ खावे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, बात मान या मत मान। साँची-साँची बात, बात यह कहे ईशान ।
शब्दार्थ: पी.टी. ऊषा = भारतीय धाविका, ईशान = उत्तर-पूर्व भाग
भावार्थ: भवन के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में डबल रोड होने से वहाँ रहने वाले सभी व्यक्तिजीवन भर विभिन्न प्रकार के सुख भोगते हैं। शांति और खुशियाँ यूं दौड़ती हुईआती हैं,मानो पीटी ऊषा आरही हो। वहाँ मन इतना प्रसन्न रहता है कि यदि पत्नीथाली में बाटी लाती है तो वह भीलडके समान स्वादिष्ट लगती है।
‘वाणी’ कविराजकहते हैं किवहाँहर प्रकार से उन्नति होती है, इस बात को तुम सत्य मानो या मत मानो किंतु ये सभी बातें ईशान कोण स्वयं अपने ही मुंह से कहते हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shastra : Agni Kon Road ( Purv Dakshin Road)/ Road On South-East Side(SK-31)



अग्नि कोण के रोड़ अग्नि कोण के रोड़ में, घटे बैंक बेलेन्स। घट-घट प्राणेश्वर घटे, वाईफ नानसेन्स।। वाईफ नानसेन्स, फाइनल डिसिजन देवे। प्रजेण्ट हो पतिदेव, कन्सल्ट कभी न लेवे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, रहे श्रीमानजी मौन। लेय पत्नी क्रेडिट, रोड़ हो अग्नि कोण।।
शब्दार्थ: : नानसेन्स = बुद्धिहीन मूर्खा, प्रजेण्ट = उपस्थिति, फाइनल डिसिजन = अंतिम निर्णय, क्रेडिट = सम्मान ख्याति, कन्सल्टरू सलाह
भावार्थ:
जिस भवन के पूर्व और दक्षिण दिशाओं में रोड़ हो वहाँ धन-वृद्धि रुक जाती है, जलांजलि की भाँति बैंक बैलेन्स निरन्तर घटता रहता है । बुद्धिहीन पत्नी मिलने से प्राणेश्वर का मान-सम्मान भी घटने लग जाता है। इतना ही नहीं वही नानसेन्स पत्नी इम्पार्टेन्ट केसेज में फाइनल डिसीजन भी दे देती है। पति महोदय की प्रजेन्स में भी किसी भी बड़ी बात पर बेचारे से कभी कन्सल्ट नहीं लेती।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि ऐसे घरों में हर समझदार व विद्वान, पति परमेश्वर लौहे की अलमारी की भाँति मौन ही खड़े रहते हैं, कभी बोल पड़ते हैं, तो वह भी अलमारी की स्टाईल में ही किसी के कुछ समझ में नहीं आता । देखते-देखते हर कार्य की क्रेडिट वही नानसेन्स पत्नी ले जाती है। बेचारा पति हर बार जीती बाजी हार जाता है। ऐसे भूखण्ड स्वामी को पूर्व व उत्तर दिशा में अधिक जगह छोड़ते हुए ईशान कोण में गहरा टेंक व प्रवेश द्वार उचित स्ािान पर लगाकर सुख प्राप्त कर सकते हैं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



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