पूरब-पश्चिम रोड
पूरब-पश्चिम रोड़ हो, हो मर्यों की बात ।
प्राणेश्वरियाँ प्राण दे, रहे आपकी बात ।।
रहे आपकी बात, बढ़े बुजुर्गों का मान ।
खा मालपुआ खीर, वे दिन-भर चबाय पान ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, जरा करले जोड़-तोड़।
नाज करता समाज, रख पूरब-पश्चिम रोड़ ।।
शब्दार्थ: बुजुर्ग = वृद्ध व्यक्ति, चबाय = चबाना, नाज = गर्व, पूरब = पूर्व दिशा
भावार्थ: जहाँ पूरब-पश्चिम दिशा में एक साथ रोड़ हो उस परिवार में पुरुष वर्ग की बातों को पूरा सम्मान मिलता है। प्राणेश्वरियाँ प्राणन्यौछावर कर देती हैं,परन्तु अपने प्रेम को घटने नहीं देती। बड़े-बुजुर्गों को अच्छा-भला सम्मान मिलता है, वे आए दिन मालपुआ-खीर खाते हुए दिन-भर पान चबाते रहते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि जरा भाग-दौड़ करो भाई, कुछ जोड़-तोड़ बिठाके ऐसा प्लाट खरीद लो। ऐसे भवनों में रहने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा तो बढ़ती है किन्तु उस अनुपात में धन वृद्धि कुछ कम रहती है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
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