Vastu Shastra: Khidki/ (SK-107)



खिड़की खिड़की ऐसी होय जो, ऊँची एक समान । समान दरवाजे रहे, दर-दर हो सम्मान ।। दर-दर हो सम्मान, आय के आएं साधन । बिना कमाया दौड़, आए करोड़ों का धन ।। कह ‘वाणी’ कविराज, रख अच्छे समय खिड़की। सुन्दर पड़ोसिन से, बातें करावे खिड़की।।
शब्दार्थ:

साधन = स्रोत
भावार्थ:

खिड़कियों की ऊँचाइयों में अंतर रख दिया तो यह हानिकारक सिद्ध होगा। दरवाजे भी इसी प्रकार समान ऊँचाई के होने चाहिए । दक्षिण दिशा के दरवाजे को धन-वृद्धि हेतु अन्य की तुलना में कुछ ज्यादा चैड़ा व कुछ ज्यादा ऊँचा रखना चाहिए । दरवाजों की समान ऊँचाई के कारणआयवसम्मान दोनों बढ़ते हैं,कभी-कभी तो बिना कमाया धन भी प्राप्त हो सकता है। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि अच्छे मुहूर्त में रखी खिड़की से अन्य लाभों में तो देर हो सकती है, किन्तु सुन्दर पड़ोसिन सेतो तुरन्त बातें करवाती है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 




Vastu Shastra: Mchli Jesi Prit/ (SK-106)




मछली जैसी प्रीत मछली जैसी प्रीत हो, जीव-जीव के मीत। जीवन-भर का साथ दे, लेय हृदय को जीत।। लेय हृदय को जीत, इधर काँटा उधर अश्रु । दिखावे प्रेम बहुत, नहीं दिखते प्रेम-अश्रु ।। कह ‘वाणी’ कविराज, टैंक की मछली ऐसी। प्रीत तुम्हें सिखाय, प्रीत कर मछली जैसी।।
शब्दार्थ:

प्रीत प्रेम, टेंक = पानी का कुण्ड
भावार्थ:

सच्चा प्रेम ही संसार का प्राण है। प्राणी मात्र एक दूसरे से पावन प्रेम व सच्ची श्रद्धा रखते हुए सभी के हृदय को जीत लेते हैं। इसी में जीवन की सार्थकता है । इधर काँटा चुभे और अश्रु धारा उधर बहे, यही प्रीत की पहचान है। आजकल हर कोई प्रेम में पागल दिखाई देता है, किंतु वियोग शृंगार की एक मात्र शाश्वत पूंजी अविरल अश्रुधारा, नेत्रों में कहीं दिखाई नहीं देती है। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वॉटर टैंक या जल भरे काँच के शो केस में मछलियाँ अवश्य रखें। आवासीय घरों में प्रेम प्रतीक यह मछलियाँजल को निर्मल रखती निवासियों के मन की मलिनताएँ दूर करती हुई सभी के स्नेहिल हृदय को पूर्णतः निष्कपट बनाने में सहयोग देंगी।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया




Vastu Shastra: Bhagtram/ (SK-105)



भगतराम सौ-सौ के नोट रखते, मन में रखे न राम । पल-पल नया झूठ कहे, तो कहे भगतराम ।। तो कहे भगतराम, भरी तिजोरियाँ रोवे । रोय वह जीवन भर, नयन कभी नहीं सोवे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, आप आपको न कोसो बुलालो वास्तुकार, नोट दो सौ के सौ-सौ ।।
शब्दार्थ:

भगतराम = राम का भगत, नयन = नेत्र, कोसो = आत्मग्लानि अनुभव करना
भावार्थ:

जिनके घरों में सौ-सौ के नोटों की तिजोरियाँ भरी होती हैं, वे मन में राम नहीं रख पाते हैं, दिन में सौ-सौझूठ बोलने पर भी लोग उन्हें भगतराम का ही दर्जा देते हैं। आधुनिक भगतराम कई प्रकार की मुसीबतों के कारण मनही मनरोते रहते हैं। जीवन में उन सजल नेत्रों को कभी आराम नहीं मिल पाता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि आप अपने को न कोसें । किसी अनुभवी वास्तुकार को बुलवाकर, सौ नोट सौ सौ के,देकर भवन में सुधार करवालें जिससे धन के साथ-साथ कई प्रकार के अन्य सुख भी प्राप्त होएंगे।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 





Vastu Shastra: Dhan Ki Disha/ (SK-104)



धन की दिशा निन्याणू के खेल में, सौ-सौ चक्कर खाय । चार बजे जा सेठजी, अर्द्ध रात्रि को आय ।। अर्द्ध रात्रि को आय, गली के भौंके कुत्ते । ना पहचान पावे, बेचारे देशी कुते ।। कह ‘वाणी’ कविराज, राज धन का मैं जानूं। धन की दिशा उत्तर, कर एक के निन्याणू ।
शब्दार्थ:

राज = रहस्य, एक के निन्याणू = खूब धन कमाना
भावार्थ:

निन्याणवें के चक्कर में लाखों व्यक्तियों को सौ-सौ चक्कर काटते-काटते चक्कर आने लग गए, फिर भी उन्हें संतोषजनक सफलता नहीं मिल पाई। इन सेठजी को ही देखो चार बजे ब्रह्म-मुहर्त में घर से निकलते और अर्द्ध-रात्रि को लौटते हैं। यहाँ तक कि गली के कुत्ते भी नहीं पहचान पाने के कारण भौंकते हुए कभी-कभी धोती पकड़ लेते हैं। खैर! ये पढ़े लिखे भी नहीं, बेचारे देशी कुत्ते ही तो हैं। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस प्रकार धन-प्राप्ति नहीं होती है। धन का राज मैं जानता हूँ। धन की दिशा उत्तर है, संभव हो तो उत्तर दिशा में अधिक दरवाजे व खिड़कियाँ रखो और उत्तर की ओर तिजोरी रखो। धन के देवता कुबेर का पूजन करो। इस प्रकार कुबेर की कृपा से तुम एक के निन्याणवे, बड़ी आसानी से कर सकोगे।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shastra: Svarn Sidhi/ (SK-103)



स्वर्ण-सीढ़ी चढ़ती सीढ़ी आपकी, संख्या विषम रखाय । करो रचना तुम उसकी, घड़ी घूमती जाय ।। घड़ी घूमती जाय, घूम लेफ्ट से राईट । जल्दी वे दिन आय, एवरी थिंग राईट ।। कह ‘वाणी’ कविराज, चढ़े सात-सात पीढ़ी। और स्वर्ग ले जाय, रखो पाँव स्वर्ण-सीढ़ी।
शब्दार्थ:
                 विषम = 1,3,5,7 संख्या, लेफ्ट से राईट = बाँये से दाँए, एवरीथिंग इज राईट = सब कुछ ठीक होना
भावार्थ:

जब घर में सीढ़ी चढ़ाई जा रही हो तब इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि सोपानों की संख्या विषम हो। यदि घुमावदार सीढ़ी हो तो सीढ़ी का घुमाव भी घड़ी के काँटों की भाँति लेफ्ट से राईट की ओर ही हो.। इस प्रकार सीढ़ी सही स्वरूप में बनने से घर कई दृष्टिकोणों से संतुलित अवस्था में आने लगता है। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वहाँ सात-सात पीढ़ियाँ आराम से सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती हैं। जीवन के उत्तरार्द्ध में सोने की सीढ़ी के ऊपर पाँव रखवा कर वही सीढ़ी आपको स्वर्गतक ले जाती है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया




Vastu Shastra: Charget/ (SK-102)



चारगेट चले कहीं बस आपका, गेट रखो तुम चार । चार तरफ हो रोड़ तो, मिले पुरुषार्थ चार ।। मिले पुरुषार्थ चार, चार दिशा गूंजे नाम । कह सब दीन-दयाल, और कहते राम-श्याम ।। कह ‘वाणी’ कविराज, कोई खुश कोई जले । जले जलने वाले, तेरे बस पे बस चले ।।
शब्दार्थ:
               गेट दरवाजा, चार पुरुषार्थ = अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, बस पे बस चले निरन्तर आर्थिक सम्पन्नता         बढ़ना,जले जलने वाले ईर्ष्यालु व्यक्तियों के ईर्ष्या
भावार्थ:
यदि आपका बस चले तो चारों दिशाओं में रोड़ होने पर चार द्वार रख देवें। इससे जीवन आनन्दमय व्यतीत होता हुआ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कराता है। आपकी कीर्ति सर्वत्र फैलेगी। चारों दिशाओं में आपका नाम होगा। आपको कभी दीन दयाल तो कभी राम-श्याम के नाम से पुकारेंगे। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि आपकी तरक्की को देख कर कुछ लोगप्रसन्न होंगेतो कईसारे ईर्ष्यावशजलने भीलगेंगे। आप निश्चिंत रहें। जलने वाले जल-जल कर जल जाएंगे, किंतु तुम्हारे तो बस पर बस चलेगी। आर्थिक उन्नति होती ही रहेगी।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया




Vastu Shastra: Bijli Ka Mitar/ (SK-101)




बिजली का मीटर मीटर बिजली का लगे, जहाँ किचन बन जाय । जीवन भर तुम खुश रहो, बिजली कभी न जाय।। बिजली कभी न जाय, पंखे टी.वी. सब चले । चले सब फ्रिज, कूलर, आलसी मीटर न चले ।। कह ‘वाणी’ कविराज, बुला इलेक्ट्रिक फीटर। चाय-पानी पिलाय, लगवाय अच्छा मीटर ।।
शब्दार्थ:
                 आलसी = धीरे कार्य करने वाला, इलेक्ट्रिक फीटर = बिजली फिटिंग करने वाला
भावार्थ:
अग्नि कोण में किचन के पास बिजली का मीटर लगवाने से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि जीवन भर कभी बिजली नहीं जाती। पंखे, टी.वी., कूलर, लाइटें सभी दिन-रात चलते हैं परंतु उस घर में एकमात्र आलसीमीटर नहीं चलता है। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इलेक्ट्रिक फिटर बुलवाकर, उन परम श्रद्धेय कोप्रेम से चाय-पानी करा कर बस एक अच्छा-सा मीटर लगवालो।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 






Vastu Shastra: Mehman/ (SK-100)



मेहमान यदि मेहमान बहुत से, आते जाते खाय । पाँच-पाँच पकवान वे, खाय-खाय के खाय ।। खाय-खाय के खाय, कभी ना रोटी खावे । जोड़े लंबे हाथ, आज श्रीराम बचावे ।। कह ‘वाणी’ कविराज, कर वायु-कोण सम्मान । फिर भी ना मन भाय, बनो तुम भी मेहमान ।।
शब्दार्थ:
                  :मन भाय = मन को उचित लगना

भावार्थ:
कई मेहमान ऐसे आते हैं, जिनसे मेजबान बेचारे भयंकर परेशान हो जाते हैं। वेनजाने कहाँ-कहाँ से आते-जाते हुए आपके घर आटपकते हैं। खीर-पूड़ी-हलवा आदिपाँचों पकवान खाने के बाद भी वे आपको खाए बिना आपका घर नहीं छोड़ते हैं। आपके यहाँ से जाने के तुरन्त बाद वे जाति-समाज व मित्र-मण्डली में आपकी मेहमानदारी की कटु आलोचना किए बिना एक दिन भी स्वस्थ नहीं रह सकते। आपका खाना तक दुश्वारहोजाता है। ऐसे मेहमान-पीड़ित सज्जन, प्रभु के लंबे हाथ जोड़ कर निवेदन करते हैं कि आज तो ऐसे मेहमानों से श्रीराम ही बचाएं। आज तो वे सूर्योदय से ही श्रीरामम् शरणम् गच्छामि श्री गणेशम् शरणम गच्छामि का मानसिक जाप करने लग गएहैं। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वायु कोण में निर्मित कमरों में उन्हें ठहराने से वे अधिक दिनों तक नहीं ठहर पाते एवं दोनों ही पक्षों का सम्मान बढ़ता है। इसके बाद भीयदिमाकूल हल नहीं निकलताहोतब एक ही रास्ता बचता है कि जैसे ही आपकी मुण्डेर पर कौआ बोले कि तुरन्त, आप भी ताला लगा किसी के यहाँ मेहमान बनने निकल जाओ।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 




Vastu Shastra: Bhari Saman/ (SK-99)



भारी सामान सामान आय आपका, भारी भरकम होय। इधर-उधर जो रख दिया, रोय-रोय तू रोय।। रोय-रोय तू रोय, तब दिन-दिन घटता मान। घर का नैऋत कोण, रख तू भारी सामान ।। कह ‘वाणी’ कविराज, यूँ जीवन बढ़ता जाय। लाख-लाख के दौड़, घरों में सामान आय ।।
शब्दार्थ:
                : नैऋत = भवन का पश्चिम-दक्षिण भाग

भावार्थ:

भवन में प्रत्येक स्थान कामहत्व क्या है? उसका श्रेष्ठतम् उपयोग किस प्रकार हो सकता है। यह सभी हमारे ऋषि-मुनियों ने सुनिश्चित कर रखा है। सर्वाधिक वजनी, भारीभरकम सामान नैऋत्य कोण वाले कमरों में रखना चाहिए। उस स्थान को छोड़ कर अन्यत्र भारी सामान रखने से मानसिक परेशानियाँ हो सकती हैं। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि भारी, भरकम सामान नैऋत कोण में रखने से व्यवसाय में वृद्धि होती है। भूखण्ड के अपने प्राकृतिक संतुलन में आने से सभी व्यवस्थाएँ सुचारू रूप से चलने लगती हैं। उन घरों की ओर महंगे-महंगे कीमती सामान, दौड़-दौड़ कर आते हुए घर व फैक्ट्री की शोभा बढ़ाते हैं।

वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 



Vastu Shastra: Vayu Kon Bhro Anaj/ (SK-98)


वायु कोण भरो अनाज आया अनाज खेत का, पत्नी गावे गीत । सौ-सौ बोरी माल का, स्थान बताओ मीत ।। स्थान बताओ मीत, माल खराब न हो जाय। जब भर ट्रेक्टर जाय, भर तिजोरी नोट लाय।। कह ‘वाणी’ कविराज, वायु कोण भरो अनाज। भर तिजोरियाँ चार, हीरे बन बिका अनाज ।।
शब्दार्थ:
               : मीत = मित्र, वायु कोण = उत्तर पश्चिम का भाग

भावार्थ:

सहृदय परिश्रमी कृृषक के घर परखेतों से सौ-सौ बोरी अनाज आया है। जिज्ञासु पत्नी सुशीला पूछ रही है किहेनाथ! घर में इतनाअनाज पहली बार आया है, बताओइसे कहाँ खाली कराएं। भवन में ऐसा स्थान बताओ कि यह अनाज खराब नहीं होवे और जब ट्रैक्टर भर-भर कर मण्डी में बिकने जाए तब तिजोरियाँ भर-भर कर नोट लाए। चाहे एक-एक,दो-दो के ही नोटक्यों नहों अनपढ़ सुशीलाजी तो नोटों की भरी हुई तिजोरियाँ देखना चाहती हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वायु कोण के कमरों में अनाजभरने से वह सुरक्षित भी रहता है और समय आनेपरहीरों के भाव बिकता हुआ खाली तिजोरियाँ भर देता है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 




Vastu Shastra: Pooja Gar/ (SK-97)



पूजा-घर पूजा-घर का स्थान है, ठीक कोण ईशान । भाग जगाए आप के, बड़े-बड़े भगवान ।। बड़े-बड़े भगवान, सब आवे आपके घर । यदि किराए का घर, बना देय आपका घर ।। कह ‘वाणी’ कविराज, चयन किया स्थान दूजा। रूठे देवी-देव, होय बजार में पूजा ।।
शब्दार्थ: : दूजा = दूसरा, रूठे = अप्रसन्न होना
भावार्थ: भवन में पूजा का सर्वश्रेष्ठ स्थान ईशान कोण ही होता है। वहाँ नियमित ध्यान करने से बड़े-बड़े भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर आपके घर आते हैं। बाई चान्स आपका किराए का घर है, तो दयालु प्रभुशीघ्र ही आपका स्वयं का घर बना देंगे।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यदि भूलवश आपने पूजन के लिए अन्य स्थानचुन लिया तोतत्काल प्रभाव से आपके देवी-देवता अप्रसन्न हो सकते हैं। यदि उनमें से कोई आडू देवता निकल गया तो वह बाजार में आपकी पूजा भी करवा देगा। घरों में देवी-देवताओं को उचित स्थान पर स्थापित करने के पश्चात् ही पूजा-अर्चना-हवन इत्यादि कराने चाहिए। इसके अतिरिक्त उनदेवी-देवताओं द्वारा दिए गएमार्ग-दर्शन को भी काफीमहत्त्व देना चाहिए।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 





Vastu Shastra: Bhu Vistar/ (SK-96)



भू-विस्तार
विस्तार दिखे जब कभी, देखो ध्यान लगाय।
कोण ईशान होय तो, तनिक नहीं घबराय ।।
तनिक नहीं घबराय, बढ़ती है घर की शान।
चाँद-सितारे उतर, कर बढ़ाय घर कीशान।।
कह वाणी कविराज,और करे सब अपकार।
बना देय समकोण, होय जिधर भी विस्तार।
शब्दार्थ:
        : शान = प्रतिष्ठा, अपकार = बुराई, विस्तार = भुजाओं का विस्तार उस कोण का न्यून होना
भावार्थ:
श्रेष्ठ भूखण्ड की विशेषताएँ यह होती हैं कि चारों भुजाएँ बराबर चारों कोण समकोण होते हैं। यदि किसी भुजा में विस्तार हो रहा हो तो उसे ध्यान पूर्वक देखना चाहिए। यदि ईशान कोण में भुजाओं की वृद्धि के कारण न्यून कोण बन रहा हो तो यह स्थिति सभी के लिए हर प्रकार से श्रेष्ठतम् है। ऐसी आकृति के भूखण्ड में आसमां से चाँद-सितारे उतर कर कुल-गौरव बढ़ाते हैं। अच्छे प्रारब्ध वाली आत्माएँ जन्म लेती हैं
 वाणी कविराज कहते हैं कि ईशान कोण को छोड़ कर यदि किसी अन्य कोण में विस्तार होतोभूमि को कम ज्यादा कर उसे समकोण में बदलने पर ही वह भूखण्ड आवासीय दृष्टि से उपयोगी भूखण्ड बन सकेगा।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 





Vastu Shastra: Shaly Shodhan/ (SK-95)



शल्य-शोधन शल्य-शोधन जहाँ करें, खड्डा दे खुदवाय। सिर जितना गहरा करें, मिट्टी दे फिंकवाय ।। मिट्टी दे फिकवाय, शुद्ध मिट्टी मंगवाय । बुला नक्शा नवीस, नवीन नक्शा बनवाय ।। कह ‘वाणी’ कविराज, होय वहाँ वास्तु-पूजन। रहे पीढ़ियाँ सात, करो मित्र शल्य-शोधन ।।


शब्दार्थ: : शल्य-शोधन = भूमि का शुद्धिकरण, नवीन : नया
भावार्थ:

भूमि का शल्य-शोधन करने के लिए गृह-स्वामी के सिर के बराबर गहरा उस आवासीय भूखण्ड पर चारों ओर से खड्डा खोद कर सारी मिट्टी बाहर फिंकवानी चाहिए। उस पूरे खड्डे को पुनर: ताजा मिट्टी से भरना चाहिए। निर्माण कार्य के पूर्व नक्शा नवीस आर्किटेक्ट व वास्तुकारों की मदद से वास्तु नियमानुसार आधुनिक नक्शा बनवाना चाहिए।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि श्रेष्ठ वैदिक ब्राह्मण द्वारा वास्तु पूजन कराने के पश्चात निर्माण-कार्य प्रारंभ करने से सात-सात पीढ़ियां बड़े आनंद से रहती हैं।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 




Vastu Shastra: Shreshthtm Somvar/ (SK-94)



श्रेष्ठतम् सोमवार सोमवार को कर शुरू, संभाल महादेव । मिले सुख-शांति आपको, तुम्हें बनावे देव।। तुम्हें बनावे देव, देय बुध कीर्ति वैभव । पूर्ण आयु संतान, सभी पाय पूर्ण-वैभव ।। कह ‘वाणी’ कविराज, भरे गुरुज्ञान-भण्डार। शुक्र भी सुख देवे, पर श्रेष्ठतम् सोमवार ।
शब्दार्थ:
               : समाज-वैभव = समाज में प्रतिष्ठा

भावार्थ:

निर्माण-कार्य सोमवार को प्रारंभ करने से भोले शंभ महादेव सभी विघ्न बाधाएँ दुर कर देते हैं। सुख शांति प्रसन्नता देते हुए आपको भी देव-पुरुष बना देंगे। बुधवार के दिन प्रारंभ करने से धन, कीर्ति व वैभव बढ़ता है। पूर्ण आयु संतानें घरों में जन्म लेकर समाज में कुल-गौरव बढ़ाती हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि गुरुवार को निर्माण कार्य प्रारंभ करने से ज्ञान भण्डार शीघ्र भर जाता है। शुक्रवार भी ठीक-ठीक सुखदायी है किंतु सर्वश्रेष्ठ वार तो सोमवार ही होता है। स्वयं के इष्ट-देव, कुल-देव, देवी-देवता तथा कुल गुरु एवं ज्योतिषियों आदि द्वारा बताई गई तिथियों एवं वार को भी महत्त्व देना चाहिए। सातों वारों के उक्त वर्णित प्रभाव तो सार्वभौमिक हैं।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shastra: Choti Umar Mkan/ (SK-93)



छोटी उम्र मकान चले काम रविवार को, तो अग्नि करे वार। मंगल गड़बड़ यूँ करे, कर देवे बीमार ।। कर देवे बीमार, लेय धन शनि महाराज । निकाल दे सब तेल, तेल चढ़ा शनि पर आज ।। कह ‘वाणी’ कविराज, अटक-अटक श्वाँस चले। छोटी उम्र मकान, मुश्किलों से काम चले ।।
शब्दार्थ:
                गड़बड़ = बाधा डालना, अटक-अटक = रूक-रूक कर

भावार्थ:
रविवार को निर्माण कार्य प्रारंभ करने से अग्नि-भय बना रहता है। मंगलवार को प्रारंभ करने से बीमारियाँ स्वतरू बढ़ती हैं। शनिवार को प्रारंभ करने वालों को तो शनि महाराज पूरा तेल निकाल कर ही छोड़ते हैं। प्रत्येक शनिवार को तेल चढ़ाने जाना पड़ता है, अर्थात् पहले अपना फिर घर का तेल निकलता है। इस अशुभ निर्माण से श्वाँसें भी इस प्रकार अटक-अटक कर चलती हैं,मानो अंतिम श्वाँसें चल रही हों।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उस मकान की उम्र भी छोटी होती है एवं निर्माण कार्य भी रूक-रुक कर चलता हुआ बड़ी कठिनाइयों से पूर्ण होता है।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 




Vastu Shastra: Dekho Nim Vedy Bhga/ (SK-92)



देखा नीम वैद्य भगा तुलसी ही तुलसी लगा, सुनले तुलसीराम । कीड़े मारे पेट के, पल भर में आराम ।। पल भर में आराम, रहता प्रसन्न तन-मन । आम, बेल, अंगूर, जयंती केशर चंदन ।। कह ‘वाणी’ कविराज, नीम देखा वैद्य भगा। शोक मिटाय अशोक, तू तुरन्त तुलसी लगा।।
शब्दार्थ:
कष्ट, = अशोक = एक पेड़ का नाम जिसके आम जैसे पत्ते आते हैं

भावार्थ:

हे तुलसीराम ! सुनले तुम्हें आवासीय भवनों में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। इसमें अनेक औषधीय गुण होते हैं। यह पेट के कीड़े मार कर पल भर में आराम कर देता है। एक बार कीड़े मर जाने के बाद जब तक वापस कीड़े नहीं पड़ें तब तक आपका मन सदैव प्रफुल्लित रहेगा। आवासीय क्षेत्रों में आम, बेल, अंगर, केशर, जयंती, चंदन आदि पौधे शुभफलदायक माने गए हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि सर्व रोग निवारक नीम को देखते ही वैद्यराज भाग गए, सोचा अरे! इस घर में तो फीस का एक पैसा भी मिलने की उम्मीद नहीं है। सभी प्रकार के शोक दूर करने के लिए घरों में अशोक का वृक्ष अवश्य लगाएं किन्तु हे तुलसीराम ! तुलसी का पौधा तो तुरन्त लगाओ।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया





कॉपीराइट

इस ब्लाग में प्रकाशित मैटर पर लेखक का सर्वाधिकार सुऱक्षित है. इसके किसी भी तथ्य या मैटर को मूलतः या तोड़- मरोड़ कर प्रकाशित न करें. साथ ही इसके लेखों का किसी पुस्तक रूप में प्रकाशन भी मना है. इस मैटर का कहीं उल्लेख करना हो तो पहले लेखक से संपर्क करके अनुमति प्राप्त कर लें |
© Chetan Prakashan