Vastu Shastra: Bhu Vistar/ (SK-96)



भू-विस्तार
विस्तार दिखे जब कभी, देखो ध्यान लगाय।
कोण ईशान होय तो, तनिक नहीं घबराय ।।
तनिक नहीं घबराय, बढ़ती है घर की शान।
चाँद-सितारे उतर, कर बढ़ाय घर कीशान।।
कह वाणी कविराज,और करे सब अपकार।
बना देय समकोण, होय जिधर भी विस्तार।
शब्दार्थ:
        : शान = प्रतिष्ठा, अपकार = बुराई, विस्तार = भुजाओं का विस्तार उस कोण का न्यून होना
भावार्थ:
श्रेष्ठ भूखण्ड की विशेषताएँ यह होती हैं कि चारों भुजाएँ बराबर चारों कोण समकोण होते हैं। यदि किसी भुजा में विस्तार हो रहा हो तो उसे ध्यान पूर्वक देखना चाहिए। यदि ईशान कोण में भुजाओं की वृद्धि के कारण न्यून कोण बन रहा हो तो यह स्थिति सभी के लिए हर प्रकार से श्रेष्ठतम् है। ऐसी आकृति के भूखण्ड में आसमां से चाँद-सितारे उतर कर कुल-गौरव बढ़ाते हैं। अच्छे प्रारब्ध वाली आत्माएँ जन्म लेती हैं
 वाणी कविराज कहते हैं कि ईशान कोण को छोड़ कर यदि किसी अन्य कोण में विस्तार होतोभूमि को कम ज्यादा कर उसे समकोण में बदलने पर ही वह भूखण्ड आवासीय दृष्टि से उपयोगी भूखण्ड बन सकेगा।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया 





कोई टिप्पणी नहीं:

कॉपीराइट

इस ब्लाग में प्रकाशित मैटर पर लेखक का सर्वाधिकार सुऱक्षित है. इसके किसी भी तथ्य या मैटर को मूलतः या तोड़- मरोड़ कर प्रकाशित न करें. साथ ही इसके लेखों का किसी पुस्तक रूप में प्रकाशन भी मना है. इस मैटर का कहीं उल्लेख करना हो तो पहले लेखक से संपर्क करके अनुमति प्राप्त कर लें |
© Chetan Prakashan