Vastu Shastra: Garh Prvesh/ Entering A New House (SK-85)



गृह-प्रवेश गृह-प्रवेष के समय तो, सभी पुरोहित लाय । मण्डप माला यंूॅ सजा, गणपति देय बिठाय ।। गणपति देय बिठाय, सुनार सजा स्वर्ण थाल । भू-कंचन उपहार, हो ब्राहमण माला-माल ।। कह ‘वाणी’ कविराज, तुम मांग रखो ना शेष । खाओ भर-भर पेट, हॅंस-हॅंस करलो प्रवेष ।।
शब्दार्थ:
                  पुरोहित = पूजन कार्य कराने वाला, सुनार = सुन्दर गृह स्वामिनी

भावार्थ: गृह-प्रवेश के परम् पुनीत अवसर पर तो एक से अधिक पुरोहितों को आमंत्रण दें। पूर्ण नव-निर्मित भवन में उचित स्थान पर मण्डप बनाएं, जिसको माला, पुष्प, कदली स्तम्भ इत्यादिसे सजाएं। इसके बादलंबोदर महाराज की लम्बी चैड़ी स्थापना करें। गृह-स्वामिनी पूजन हेतु सोने की थाली सजा कर लावे। मिष्ठान्न खिलाते हुए पतिदेव की सलाहा नुसार ब्राह्मणों को वस्त्र व स्वर्ण इत्यादि का दान देकर उन्हें प्रसन्न करें।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि यथासंभव बाजार का भुगतान कर देना चाहिए। निर्माण कार्य में जिनका सराहनीय सहयोग मिला, उन्हें भोज में आमंत्रित कर, मनुहार कर-कर के भोजन कराएं। लो-लो, ना-ना,हाँ-हाँ,अरे नहीं-नहीं थोड़ा सा में कुछ झूठा पड़ जाए तो भी चिन्ता न करें। ब्रह्म-भोज के पश्चात् आप हँसते-हँसते गृह-प्रवेश करें।
वास्तुशास्त्री: अमृत लाल चंगेरिया






कोई टिप्पणी नहीं:

कॉपीराइट

इस ब्लाग में प्रकाशित मैटर पर लेखक का सर्वाधिकार सुऱक्षित है. इसके किसी भी तथ्य या मैटर को मूलतः या तोड़- मरोड़ कर प्रकाशित न करें. साथ ही इसके लेखों का किसी पुस्तक रूप में प्रकाशन भी मना है. इस मैटर का कहीं उल्लेख करना हो तो पहले लेखक से संपर्क करके अनुमति प्राप्त कर लें |
© Chetan Prakashan